हाइकोर्ट का बड़ा फैसला : दो जगहों पर नाम मिलने पर रद्द होगा नामांकन, एक प्रत्याशी एक ही जगह से लड़ेगा चुनाव
नैनीताल। पंचायत चुनाव से पहले हाइकोर्ट ने एक बड़ा फैसला लिया है। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने ये स्पष्ट किया है कि एक व्यक्ति एक ही जगह से चुनाव लड़ सकता है। या तो वो नगर क्षेत्र से या फिर ग्राम्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा। अगर किसी प्रत्याशी का दो जगहों से नामांकन पाया जाता है तो उसका नामांकन रद्द कर दिया जाएगा। पंचायत चुनाव को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ये साफ किया है कि वोटर लिस्ट में दो जगह नाम आना ही गड़बड़ी है। इस आधार पर व्यक्ति दो जगहों से चुनाव नहीं लड़ सकता। एक व्यक्ति एक ही जगह से चुनाव लड़ सकता है। कोर्ट ने इस मामले में राज्य निर्वाचन आयोग की दलीलों को सुनने के बाद फिलहाल आदेश पर रोक लगा दी है। दरअसल हाल ही में सोशल मीडिया पर एक मामले को लेकर चर्चाएं तेज थीं। जिसमें दावा किया जा रहा था कि एक ही व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग क्षेत्रों की वोटर लिस्ट में शामिल है। वो दोनों जगहों से नामांकन कर रहा है। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग को सफाई देनी पड़ी थी जिसमें उन्होंने अफवाहों का खंडन करते हुए नामांकन रद्द होने की बात को नकारा था। अब हाईकोर्ट ने इस मसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि वोटर लिस्ट में दो जगह नाम आने ही गड़बड़ी है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में पंचायत चुनाव लड़ रहे कुछ प्रत्याशियों के नाम दो जगह यानी नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत दोनों ही मतदाता सूची में दर्ज है तथा रिटर्निंग अधिकारियों ने प्रत्याशियों के नामांकन पत्रों की जांच करते समय ऐसे मामलों में अलग-अलग निर्णय भी दिए हैं। दो जगह नाम होने के आधार पर कुछ प्रत्याशियों के नामांकन जहां रद्द हो गए हैं ,वहीं कुछ प्रत्याशियों के नामांकन को वैध घोषित कर दिया गया है। रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा उत्तराखंड पंचायत पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों की मनमानी एवं पक्षपात पूर्ण व्याख्या से व्यथित होकर समाजसेवी शक्ति सिंह बर्त्वाल की ओर से नैनीताल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल कर मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में न्याय की गुहार लगाई गई । याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में तर्क दिया है है कि देश में किसी भी राज्य में ,मतदाता सूची में दो अलग-अलग मतदाता सूची में नाम दर्ज होना आपराधिक श्रेणी में आता है। ऐसे में उत्तराखंड में निर्वाचन आयोग की ओर से ऐसे लोगों के निर्वाचन को स्वीकृति किस आधार पर प्रदान की जा रही है? याचिकाकर्ता द्वारा अपनी याचिका में यह भी कहा गया है कि रिटर्निंग ऑफीसरों द्वारा नाम निर्देशन पत्रों की जांच के समय उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा 9 की उप धारा 6 एवं 7 के प्रावधानों की घोर अनदेखी की गई है तथा प्रत्याशी विशेष को राहत देने के लिए कानून की मनमानी एवं पक्षपात पूर्ण व्याख्या की गई है । बताना होगा कि शिकायतकर्ता शक्ति सिंह बर्त्वाल ने उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयुक्त को 7 और 8 जुलाई को इस विषय को लेकर एक पत्र प्रेषित किया था, जिसमें उत्तराखंड में गतिमान त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में नगर निकाय चुनाव की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को मतदान और नामांकन से रोके जाने के संबंध में स्पष्ट दिशा निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से एक सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करते हुए नाम निर्देशन पत्र की जांच के समय पंचायती राज अधिनियम की धारा 10; ख;1धारा 9;3 धारा 54;3 एवं धारा 91; 3 द्धप्रावधान लागू किए जाने संबंधी आदेश जारी किया गया था।