*_पंजाब में सियासी हलचल: 10 आप विधायकों ने तोड़ी पार्टी लाइन, राज्यसभा चुनाव में जनता पार्टी प्रमुख नवनीत चतुर्वेदी को दिया समर्थन_*
पंजाब। पंजाब की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) के भीतर दरारें गहराती नज़र आ रही हैं। राज्यसभा उपचुनाव से ठीक पहले पार्टी के दस विधायकों ने बगावती रुख अपनाते हुए जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवनीत चतुर्वेदी के समर्थन में खड़े होकर पूरे राज्य की सियासत को हिला दिया है।सूत्रों के अनुसार, नवनीत चतुर्वेदी ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते समय ‘आप’ के दस विधायकों का समर्थन पत्र अपने साथ जोड़ा। यह कदम न केवल पार्टी नेतृत्व के लिए चुनौती है, बल्कि पंजाब में उसकी एकजुटता पर सवाल भी खड़े कर रहा है।
असंतोष की जड़ें पुरानी बताई जा रही हैं।
जानकारी के मुताबिक, आप विधायकों के असंतोष की शुरुआत कुछ महीनों पहले हुई थी, जब पार्टी नेतृत्व ने टिकट बंटवारे और उम्मीदवार चयन में स्थानीय नेताओं की राय को नज़रअंदाज किया। कई विधायकों ने आरोप लगाया कि दिल्ली से बैठकर पंजाब की राजनीति तय की जा रही है, जिससे जमीनी प्रतिनिधियों की उपेक्षा हो रही है।
नवनीत चतुर्वेदी बने चर्चा का केंद्र
अब तक पंजाब की राजनीति में सीमित उपस्थिति रखने वाले नवनीत चतुर्वेदी अचानक सुर्खियों में हैं। दस आप विधायकों का समर्थन मिलने के बाद उनकी उम्मीदवारी ने पूरे समीकरण को पलट दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम “आप के भीतर बढ़ती असहमति और क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग” का प्रतीक बन गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में संकेत स्पष्ट
चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. सुरेश शर्मा कहते हैं —“यह केवल दस विधायकों की नाराजगी नहीं, बल्कि संगठनात्मक स्तर पर भरोसे में आई कमी का संकेत है। अगर यह असंतोष बढ़ा, तो पंजाब आप की शक्ति-संतुलन पर सीधा असर पड़ेगा।”
पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ी
आम आदमी पार्टी के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि पंजाब ही वह राज्य है जहाँ पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था। अब वही राज्य उसकी सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।केंद्रीय नेतृत्व लगातार विधायकों से संपर्क में है और नुकसान की भरपाई की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं।
राज्यसभा चुनाव अब बना साख का सवाल
विश्लेषकों के मुताबिक, यह चुनाव केवल सीट जीतने या हारने का नहीं, बल्कि “पार्टी की एकजुटता बनाम असंतोष” की जंग बन गया है। नवनीत चतुर्वेदी का उभार और दस विधायकों का विद्रोह, दोनों मिलकर पंजाब की राजनीति के समीकरण को फिर से परिभाषित कर सकते हैं।






