*_कॉर्बेट बाघ शिकार कांड की खुलेंगी परतें, 7 साल पुराने स्टे को हटाने के लिए SC का केंद्र-राज्य को नोटिस_*

Spread the love

*_कॉर्बेट बाघ शिकार कांड की खुलेंगी परतें, 7 साल पुराने स्टे को हटाने के लिए SC का केंद्र-राज्य को नोटिस_*

देहरादून/दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट पार्क में शिकार मामलों पर सीबीआई जांच पर लगी 7 साल पुरानी रोक हटाने की याचिका पर केंद्र, राज्य व पूर्व प्रमुख वन्यजीव अधिकारी को नोटिस जारी किया है. सुनवाई तीन सप्ताह बाद तय की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मामले की गंभीरता को देखते हुए कई बातें कही हैं.

सोमवार को यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया गया. वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा और वकील गोविंद जी ने रोक आदेश के क्रियान्वयन पर अदालत का ध्यान आकर्षित किया. पर्यावरणविद् अतुल सती के वकील ने तर्क दिया कि केंद्रीय एजेंसी की प्रारंभिक जांच में “वन अधिकारियों/कर्मचारियों की शिकारियों के साथ मिलीभगत” के सबूत दिए जाने के बावजूद यह आदेश पिछले सात वर्षों से लागू है.

वकील ने तर्क दिया कि सीबीआई रिपोर्ट में उस अधिकारी की संलिप्तता का सबूत दिया गया है जिसने अदालत से रोक आदेश प्राप्त किया था. अधिकारी के वकील ने याचिका का विरोध किया और जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा.

कोर्ट ने मांगा जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर शिकार और उससे जुड़े अधिकारियों, शिकारी और उनकी मिलीभगत की जांच पर लगी सात साल पुराने अंतरिम स्टे को हटाने की याचिका पर सोमवार को नोटिस जारी किया है. न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तराखण्ड सरकार और पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीएस खाती को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है. इस मामले को लगातार पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती द्वारा उठाया गया था. उन्होंने ही इस मामले में कोर्ट का रुख किया था और एक बार फिर दायर कराए गए आवेदन याचिका में सीबीआई की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में वन अधिकारियों के सहयोग का संकेत मिलने का हवाला दिया गया है. अब देखना होगा कि इस सात साल पुराने मामले में क्या मोड़ आता है.

7 साल बाद उठा मामला: इस पूरे मामले में आगे कुछ बताने से पहले ये जान लें कि ये मामला क्या है और कब हुआ था. ये मामला तब अधिक चर्चा में आया जब 4 सितंबर 2018 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि पिछले लगभग पांच साल में कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में हुई बाघों की मौतों और शिकार के मामलों की सीबीआई द्वारा जांच हो. कोर्ट ने उस वक्त ये भी कहा था कि विशेष रूप से यह देखना था कि वन अधिकारी और शिकारी गिरोह के बीच कोई मिलीभगत तो नहीं थी.

हाईकोर्ट ने यह निर्देश देने से पहले टेक्निकल रिपोर्ट्स (जैसे वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया Wildlife Institute of India (WII) की रिपोर्ट) और अन्य सुबूतों पर ध्यान दिया था. इसके बाद सीबीआई ने 3 अक्टूबर 2018 के करीब प्रारंभिक जांच दर्ज की थी. इन टीमों ने जिम कॉर्बेट और अन्य संरक्षित इलाकों में पिछले कुछ सालों में रिपोर्ट हुए शिकार और बाघ की मौतों का अध्ययन करना शुरू किया था.

शुरुआती जांच में ही आये थे कुछ तथ्य सामने: हैरानी तब हुई जब उसी साल 2018 में DS खाती (पूर्व चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन, वन्यजीव प्रतिपालक) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी उन्हें अपनी दलील रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया था. इसके बाद 22 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम (एक्स-पार्टी) स्टे लगा दिया था, जिससे सीबीआई की जाँच रुक गई.

इस पूरे मामले को उजागर या ये कहें कि तह तक जाने के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया है कि वह इस स्टे को हटाये और सीबीआई जांच को फिर से शुरू किया जाए. सती का तर्क है कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में मिले संकेत बताते हैं कि कुछ वन अधिकारी, शिकारी गिरोह के साथ मिलकर काम कर रहे थे. इसलिए गहन निष्पक्ष जांच की ज़रूरत है. अपने आवेदन में उन्होंने यह भी दावा किया है कि कोर्ट को 2018 में प्रस्तुत किए गए वैज्ञानिक व अन्य रिपोर्ट्स जैसे WII की रिपोर्ट को पूरी तरह नहीं दिखाया गया था या महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाया गया था.

अधिकारियों के वकील ने भी रखा है अपना पक्ष: हालांकि जिन अधिकारियों पर आरोप हैं, उनके वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिका काफी समय बाद दाखिल की गई है और उन्हें जवाब देने के लिए समय दिया जाना चाहिए क्योंकि आरोप गंभीर हैं. सही जवाब देने के लिए उचित अवधि आवश्यक है. इसलिए कोर्ट ने जवाब के लिए तीन सप्ताह का समय दिया. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्य तथा पूर्व प्रमुख वन्यजीव प्रतिपालक डीएस खाती को नोटिस जारी किया. पीठ ने कहा कि सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आगे कार्रवाई तय की जाएगी. मामले की अगली सुनवाई की तारीख 12 दिसंबर निर्धारित की गई है. आपको बता दें कि सीबीआई ने पहले 2023 में भी इस स्टे को हटाने के लिए आवेदन दिया था. यह मामला उसकी पुरानी कार्रवाइयों से जुड़ा है और अब उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर नोटिस जारी कर स्थिति साफ करने की शुरुआत की है.

कुछ भी हो सकता है आगे: सीबीआई ने जिस तरह से इस मामले में अपना भी पक्ष रखा है, उसके बाद संभावना यही है कि अगर मामला खुलता है और आगे जांच होती है, तो कई खुलासे हो सकते हैं. कॉर्बट से लेकर राजाजी पार्क में कई बार इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन इस मामले में 7 साल बाद फिर से कोर्ट का साफ़ रुख बताता है कि आगे मामले में कुछ भी हो सकता है.

क्या है कॉर्बेट टाइगर शिकार मामला? कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में बाघों के अवैध शिकार का खुलासा 2015 में नेपाल में पकड़े गए तस्करों के पास मिली बाघ की खाल से हुआ था. इसकी जांच करने पर पता चला कि खाल कॉर्बेट से तस्करी कर लाई गई थी. 2016 में हरिद्वार एसटीएफ ने 5 बाघों की खालें और 125 किलो हड्डियां बरामद की थी. इनमें से चार खालें कॉर्बेट के बाघों की ही पाई गईं थी.


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *