> रुद्रपुर शहर में एक और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने जा रहा है 500 करोड़ रुपये कीमत का भूमि घोटाला!
> यह महाघोटाला, माननीय मुख्यमंत्री जी के गृह जनपद मुख्यालय — ऊधम सिंह नगर में स्थित 4.07 एकड़ मछली तालाब की सरकारी भूमि से जुड़ा हुआ है, जो अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने जा रहा है।
> यह सरकारी भूमि किच्छा बाईपास रोड, रुद्रपुर में स्थित झील के सामने रोडवेज के नज़दीक, राजस्व ग्राम लमरा, खसरा संख्या 02 के मध्य स्थित है, जो रोड से लगभग 25–30 फीट गहरी है जो वैगुल नदी की जद में आती है। यह भूमि गड्ढेनुमा एवं जलमग्न होने के कारण मछली पालन के लिए तत्कालीन नगर पालिका रुद्रपुर द्वारा समाचार पत्र के माध्यम से दिनांक 21-11-88 एवं 05-12-88 को नीलामी की सूचना प्रकाशित कर, निर्धारित तिथि 07-12-88 को नीलाम की गई ।
> नीलामी में पाँच लोगों ने मिलकर संयुक्त रूप से ₹3,07,000 (तीन लाख सात हजार रुपये) की उच्चतम बोली लगाई। तत्पश्चात बोलीदाताओं द्वारा नीलामी की शर्तों के क्रम में धनराशि का ¼ भाग निर्धारित समयावधि में नगर पालिका रुद्रपुर में जमा करा दिया गया।
> इसके उपरांत नीलामी की शर्तों के अनुरूप प्रस्ताव स्वीकृति हेतु अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका रुद्रपुर द्वारा जिलाधिकारी महोदय के माध्यम से शासन को प्रेषित किया गया। शासन द्वारा पत्र संख्या 3435 दिनांक 16-12-93 के माध्यम से तत्कालीन जिलाधिकारी, ऊधम सिंह नगर को सूचित किया गया कि उक्त भूखंड मछली पालन हेतु केवल 2 वर्षों के लिए ही दिया जा सकता है। यदि नगर पालिका अथवा बोलीदाता दो वर्षों के लिए उक्त भूमि लेना चाहते हैं, तो 15 दिवस के भीतर अग्रिम कार्रवाई सुनिश्चित करें।
> इस क्रम में अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका रुद्रपुर (नैनीताल) के पत्रांक 39/PB के माध्यम से बोलीदाताओं को सूचित किया गया कि अगर वह मछली तालाब को दो वर्षो के लिए लेना चाहते है तो,वे तीन दिन के भीतर अपनी सहमति लिखित रूप में प्रस्तुत करें।
> किन्तु बोलीदाताओं द्वारा उक्त पत्र के क्रम में कोई सहमति नहीं दी गई, जिसकी पुष्टि नगर पालिका रुद्रपुर के पत्र संख्या 639/पीवी दिनांक 16-11-2005 के अवलोकन से स्पष्ट होती है।
> इसके उपरांत उच्च बोलीदाताओं ने स्वयं का अवैध कब्जा दर्शाते हुए मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ बेंच में रिट याचिका संख्या 2566 (एम.बी.)/95 दायर कर स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। यह स्थगन आदेश भ्रामक तथ्यों के आधार पर प्राप्त किया गया, क्योंकि जब शासन स्तर पर लीज/पट्टे की स्वीकृति हुई ही नहीं, तो उनका कब्जा कैसे वैध मान लिया गया ?
> नीलामी की शर्त क्रमांक 8 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि लीज – डीड की कार्यवाही पूर्ण होने के उपरांत ही पट्टेदार को प्लॉट का कब्जा दिया जाएगा। यह तथ्य सिद्ध करता है कि बोलीदाताओं का कब्जा पूर्णतः झूठा और अवैध था। वास्तव में यह भूखंड आज भी खाली है।
> इसके बावजूद महेंद्र छाबड़ा, जो उक्त नीलामी में 20% का हिस्सेदार था, उसने वर्ष 2005 में—नीलामी के 17 वर्ष बाद—अपने अन्य चार साझेदारों से अपने पक्ष में शपथपत्र लेकर तत्कालीन सचिव, आवास विभाग श्री पी.सी. शर्मा से मिलीभगत कर उक्त भूमि को अपने एंव अपने दो भाइयों और पिता के नाम पर फ्री-होल्ड करवा लिया। बाकी चार लोगों को किनारे कर दिया।
> इसके लिए करोड़ों रुपये की रिश्वत देकर निम्न तीन असंवैधानिक शासनादेश जारी कराए गए —
1️⃣ शासनादेश संख्या 1803/V-आ0-2005-187आ0/01 टीसी-1, दिनांक 04.08.2005
2️⃣ शासनादेश संख्या 2818/V-आ0-2005-10 (एनएल)/2005, दिनांक 03.10.2005
3️⃣ शासनादेश संख्या 2301/V-आ0-2005-10 (एनएल)/2005, दिनांक 30.10.2006
इन शासनादेशों के आधार पर 19 वर्ष बाद, वर्ष 2007 में, 2000 (दो हजार) के सर्किल रेट पर अवैध रूप से उक्त भूमि फ्री-होल्ड कर दी गई ।
> नियम विरुद्ध किए गए फ्री होल्ड के सम्बंध में, जिलाधिकारी एवं अपर जिलाधिकारी (नजूल) द्बारा शासन को प्रेषित पत्र संख्या-1134, दिनाँक- 4 अप्रैल 2006 तथा पत्र संख्या- 199, दिनाँक- 25 नवम्बर 2006 के माध्यम से प्रेषित आख्या में पृष्ठ 2 के बिंदु संख्या दो पर स्पष्ट उल्लेख किया गया है, कि रुद्रपुर में महायोजना लागू है, जिसमें यह भूमि “जलमग्न खुला क्षेत्र” के रूप में दर्शाई गई है — और ऐसी भूमि को फ्री-होल्ड करने का कोई प्राविधान नहीं है।
> इसके बावजूद सचिव द्वारा समस्त नियमों की अनदेखी कर , तत्कालीन जिलाधिकारी एवं अपर जिलाधिकारी पर अनुचित दबाव बनाकर फ्री-होल्ड की प्रक्रिया पूरी कर दी गई।
> नियमों की अनदेखी कर असंवैधानिक शासनादेशो के आधार पर नियम विरुद्ध फ्री-होल्ड की गई, उक्त मछली तालाब की भूमि के विरुद्ध अमित नारंग सहित प्रार्थी
द्वारा जिलाधिकारी महोदय सहित शासन के उच्च अधिकारियों के समक्ष अनेको लिखित शिकायती पत्र प्रेषित किये गए, तथा नगर निगम रुद्रपुर द्वारा, गायब की गई मूल पत्रावली, के सम्बंध में भी शासन को अवगत कराया गया।
> जिसके उपरान्त शासन द्बारा जन शिकायतो का संज्ञान लेकर, तत्कालीन ईमानदार जिलाधिकारी श्री जुगल किशोर पंत की निगरानी में अपर जिलाधिकारी (नजूल) श्री जय भारत सिंह के माध्यम से जांच कराई गई।
> जांच निष्कर्ष के क्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी महोदय द्वारा अपने पत्र संख्या-10426 के साथ संलग्न, अपर जिलाधिकारी (नजूल) के पत्र संख्या- 9711 के माध्यम से जॉच आख्या के अनुसार अवगत कराया गया कि आवेदक द्वारा तथ्यों को छुपाकर प्रश्नगत भूखण्ड को फ्री-होल्ड करवाया गया है तथा अनाधिकृत व्यक्ति के माध्यम से फ्रीहोल्ड के विलेख पर राजस्व ग्राम लमरा, खसरा सं० 02 को काटकर ग्राम रम्पुरा, खसरा सं० 156 अंकित किया गया, जिसके समर्थन में कोई शासनादेश या सक्षम अधिकारी की स्वीकृति उपलब्ध नहीं होने की पुष्टि करते हुए, नियम विरुद्ध किए गए फ्री होल्ड बिलेख को निरस्त किए जाने,के सम्बंध में,जांच रिपोर्ट शासन को संस्तुति सहित अग्रिम कार्रवाई हेतु प्रेषित की गई ।
> जांच रिपोर्ट के आधार पर फ्री-होल्ड विलेख निरस्त करने की कार्यवाही सुनिश्चित करने की वजाय, शासन के अपर सचिव द्वारा निजी स्वार्थों की पूर्ति कर मामला पुनः जांच हेतु वापस निवर्तमान जिलाधिकारी श्री उदयराज सिंह को भेज दिया।
> इसके बाद, आरोपियों ने मौजूदा सरकार के एक प्रभावशाली नेता के साथ साठगांठ कर जिलाधिकारी श्री उदयराज सिंह को भारी रिश्वत देकर मामला अपने पक्ष में करवा कर,
एक ही दिन में पूरी कार्यवाही निपटा दी गई जिसकी पुष्टि पत्रों के अवलोकन से स्पष्ट है !
तथा शासन के पत्र संख्या 256323 दिनांक 26.11.2024 तथा पत्र संख्या 428 दिनांक 28.11.2024 के आधार पर, जिलाधिकारी श्री उदयराज सिंह ने उसी दिन – पिछली जांच को समाप्त कर आवेदकों और सम्बन्धित विभागीय अनापत्ति दे दी गई, तथा मछली तालाब की जमीन पर मॉल निर्माण के लिए मानचित्र स्वीकृति की रोक हटाकर, अनुमोदन जारी कर दिया गया ।
> यह पूरी कार्रवाई एक ही दिन में पूरी कर ली गई, है जो भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को दर्शाती है।
> सूत्रों के अनुसार, इस भूमि घोटाले में मौजूदा सरकार का एक प्रभावशाली नेता और“शबाना इंफ्रास्ट्रक्चर” नामक बिल्डर शामिल हैं। जहाँ लगभग 500 करोड़ रुपये की लागत का विशाल मॉल बनाने जा रहे है। जिसे कंप्लीट करने के बाद बिल्डर के द्वारा इस प्रोजेक्ट को लगभग 1500 सौ, करोड रुपयो, की कीमत में बेचा जाएगा।
> जिसके हिस्से वटवारों को लेकर भू-माफिया – बिल्डर और नेताजी के खास चहिते उद्योगपति के मध्य एक रजि0 एग्रीमेंट करवाया गया है। जिस मे प्रश्नगत भूखण्ड जिन लोगों के नाम से फ्री-होल्ड हुआ है। वह 36% के हिस्सेदार रहेंगे तथा नेताजी के खास उद्योगपति 7% के तथा 58% के हिस्सेदार बिल्डर रहेगा ?
> प्रोजेक्ट परवान चढ़ने के बाद नेताजी के हिस्से के साथ कहीं कोई बेईमानी ना हो जाए, इसलिए,नेता जी ने पहले ही अपने व अपने आकाओ के हिस्से की प्रश्नगत उक्त भूखण्ड मे, से 2739.00 वर्ग भीटर भूमि बिना किसी भुगतान के अपने चहिते उद्योगपति के नाम पर रजिस्ट्रारी करवा कर सुरक्षित कर ली, जिस पर आपत्ति दाखिल करने के लिए समय मांगने के बावजूद भी नगर निगम रुद्रपुर द्वारा, दाखिल खारिज कर दिया गया।
> जब कि नगर निगम ने खुद ही लिखित में दे रखा है की प्रश्नगत भूखण्ड कि मूल पत्रावली नगर निगम कार्यालय मे धारित नही है, तव उक्त भूखण्ड के 2739 वर्ग मीटर भाग का दाखिल खारिज कैसे और किस आधार पर कर दिया गया। यह नगर निगम के इस भूमि घोटाले में संलिप्त अधि0/कर्मचारीयो की कार्य प्रणाली पर एक गंभीर सवालिया निशान खड़े करता है?
> मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य (2011) में स्पष्ट आदेश दिया है, कि तालाब, चरागाह, खेल मैदान, ग्रामसभा या सार्वजनिक भूमि पर किसी भी व्यक्ति का कब्ज़ा या फ्रीहोल्ड नियमितीकरण पूर्णतः अवैध है। ऐसे सभी कब्जाधारियों को हटाकर भूमि को उसके मूल स्वरूप में ग्राम पंचायत को लौटाया जाए।
> इसी आधार पर मा0 उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने (कुँवर पाल सिंह व प्रीति सिंह केस, 2018) में राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह छह माह के भीतर सभी तालाब, जोहड़, खेल मैदान और सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाकर उनकी सीमाबंदी व संरक्षण सुनिश्चित किया जाए, तथा भविष्य में किसी प्रकार का कब्जा, निर्माण या फ्रीहोल्ड प्रतिबंधित रहेगा।
> इसके साथ ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने भी आदेश दिया है कि नदी, नाले या जलाशयों के दोनों ओर 200 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का निर्माण, मलबा डालना या व्यावसायिक गतिविधि करना पूर्णतः वर्जित है।
मैं समस्त न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री महोदय का ध्यान रुद्रपुर शहर में हुए,इस भूमि घोटाले की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ।
> जो नजूल पॉलिसी, सर्वोच्च न्यायालय,और माननीय उच्च न्यायालय एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों के साथ-साथ तत्कालीन जिलाधिकारी एवं अपर जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट को भी प्रभावित कर, कुछ भ्रष्ट अधिकारी, नेता और बिल्डर लॉबी ने मछली पालन हेतु निर्धारित तालाब की भूमि को नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए अवैध रूप से फ्री-होल्ड करवा लिया है।
> इस षड्यंत्र में महेन्द्र छाबड़ा,महेश छाबडा,गुलशन छाबडा पुत्र श्री चरन दास छाबडा एंव चरन दास छाबडा पुत्र स्व श्री जयचन्द्र जिन्होंने वास्तविक तथ्यों को छिपाकर भ्रष्ट अधिकारियों से साठगांठ कर यह अवैध कार्य किया है। वहीं, DDA के उपाध्यक्ष एवं सचिव ने भी सभी खामियों को नज़र अंदाज़ कर नियमविरुद्ध मानचित्र स्वीकृत किया, जिससे शासन की स्वच्छ छवि पर गंभीर आघात पहुँचा है।
अतः निवेदन है कि इस भूमि घोटाले की सीबीआई जांच करवा कर सभी दोषी नेता, भ्रष्ट अधिकारीयो एवं बिल्डर वर्ग के विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाए, ताकि जनता का विश्वास शासन-प्रशासन में पुनर्स्थापित हो सके।
अन्यथा, न्याय के लिए मजबूरन मुझे, माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेने हेतु विवश होना पड़ेगा।






